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Sunday, April 24, 2011

आप बीती

उम्र के ६५ पड़ाव तक आने पर ये अहसास हुआ की मैं तो ३ पुश्तों 
का अब साछी या गवाह हूँ आज तक पढता रहा हूँ लोगों की सुनता 
रहा हूँ लेकिन अब और नहीं अब तो अपनी सुनानी है यह विचार 
आते ही पलटा तो अपना साया भी गायब था { ये ग्लौकोमा का 
चमत्कार है जो बहुत शान्ति से बगैर आपको कोई चेतावनी दिए 
आपका विज़न चुरा लेता है ये विषय फिर कभी} अब इस नितांत 
अन्धकार में नेट पर ब्लोग्गेर्स को ये सुविधा प्राप्त है जहां आप 
अपनी कह सकतेहै.आज अधिक न कहकर में बस शुरवात करता 
हूँ कम अज कम मेरी तरह कोई अकेला प्राणी भटकता हुआ आ 
गया तो उसको ये संतोष अवश्य हो गा. की वोह यहाँ अकेला 
नहीं है. मेरे आस पास बहुत से प्राणी जिनका FINAL 
RETIREMENT अभी बाक़ी है उन सब की दशा ये ही है. 

ज़रा सा हाले-दिल एक मोनिसे-गमख्वार से कह कर
बना डाला ज़माने भर को अपना राजदां हम ने.
 रशीद असर शाहजहांपुरी

EK RUBAAI

भर गया जी हनीफ जी जी कर 
थक गए दिल के चाक सी सी कर  
यूं जिए जिस तरह उगे सब्ज़ा 
रेग जारों में ओस पी पी कर