उम्र के ६५ पड़ाव तक आने पर ये अहसास हुआ की मैं तो ३ पुश्तों
का अब साछी या गवाह हूँ आज तक पढता रहा हूँ लोगों की सुनता
रहा हूँ लेकिन अब और नहीं अब तो अपनी सुनानी है यह विचार
आते ही पलटा तो अपना साया भी गायब था { ये ग्लौकोमा का
चमत्कार है जो बहुत शान्ति से बगैर आपको कोई चेतावनी दिए
आपका विज़न चुरा लेता है ये विषय फिर कभी} अब इस नितांत
अन्धकार में नेट पर ब्लोग्गेर्स को ये सुविधा प्राप्त है जहां आप
अपनी कह सकतेहै.आज अधिक न कहकर में बस शुरवात करता
हूँ कम अज कम मेरी तरह कोई अकेला प्राणी भटकता हुआ आ
गया तो उसको ये संतोष अवश्य हो गा. की वोह यहाँ अकेला
नहीं है. मेरे आस पास बहुत से प्राणी जिनका FINAL
RETIREMENT अभी बाक़ी है उन सब की दशा ये ही है. ज़रा सा हाले-दिल एक मोनिसे-गमख्वार से कह कर बना डाला ज़माने भर को अपना राजदां हम ने. रशीद असर शाहजहांपुरी