urdu poets and poetry of shahjahanpur(UP)
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Tuesday, October 1, 2013
अज्ञात
किस तरह इस महाज पर मैं लड़ूँ
है मेरी जंग मेरे लश्कर से
क़ुर्बानी देने वालों को कोइ तमग़ा या एजाज़ नहीं मिलता
उस से सदा सिफ् क़ुरबानी की तवकका की जाती है
बड़े खलूस से दुनिया फ़रेब देती है
बड़े वसूक से हम ऐतबार करते हैं
अज्ञात
अब जा के आह करने के आदाब आए हैं
दुनिया समझ रही है कि हम मुसकरऐ है
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