Pages

Tuesday, October 1, 2013

अज्ञात

किस तरह इस महाज पर मैं लड़ूँ 
है मेरी जंग मेरे लश्कर से

क़ुर्बानी देने  वालों को कोइ तमग़ा या एजाज़  नहीं मिलता
उस से सदा सिफ् क़ुरबानी  की तवकका की जाती है

बड़े खलूस से दुनिया फ़रेब देती है
बड़े वसूक से हम ऐतबार  करते हैं


2 comments:

SALEEM said...

बहुत ख़ूब

Shakil Akhtar said...

wah wah,

k khushi se mar na jate,
agar eytbaar hota