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Sunday, January 16, 2011

तेरी  तलाश है लेकिन निशाँ  नहीं मालूम ,
की तू यहाँ है ,वहां या  कहाँ नहीं मालूम .


भटकते फिरते हैं  हम यूँ ही सहन-इ-गुलशन में ,
है किस तरफ को मेरा आशियाँ नहीं मालूम.


खबर है दीन से, ओक्बा का न डर है मुझको,
ज़मीं केसी है , क्या आसमान नहीं मालूम.


किया तलाश बहुत मुझको  काफला न मिला,
लुटा था ज़ेरे-फलक  कारवाँ नहीं मालूम. ,


सुना क़फ़स में था में ने  की जल गया गुलशन,
बचा की ख़ाक हुआ आशियाँ  नहीं  मालूम.


न पूछो मुझसे मेरी बे-खुदी का ये आलम,
की दिल किधर है ,जिगर है कहाँ नहीं मालूम.


में किस तरह से कहूं  हाले-दिल  किसी से "शमीम"
हो कितनी दर्द भरी दास्ताँ नहीं मालूम.




                        शमीम बुखारी 

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