तेरी तलाश है लेकिन निशाँ नहीं मालूम ,
की तू यहाँ है ,वहां या कहाँ नहीं मालूम .
भटकते फिरते हैं हम यूँ ही सहन-इ-गुलशन में ,
है किस तरफ को मेरा आशियाँ नहीं मालूम.
खबर है दीन से, ओक्बा का न डर है मुझको,
ज़मीं केसी है , क्या आसमान नहीं मालूम.
किया तलाश बहुत मुझको काफला न मिला,
लुटा था ज़ेरे-फलक कारवाँ नहीं मालूम. ,
सुना क़फ़स में था में ने की जल गया गुलशन,
बचा की ख़ाक हुआ आशियाँ नहीं मालूम.
न पूछो मुझसे मेरी बे-खुदी का ये आलम,
की दिल किधर है ,जिगर है कहाँ नहीं मालूम.
में किस तरह से कहूं हाले-दिल किसी से "शमीम"
हो कितनी दर्द भरी दास्ताँ नहीं मालूम.
शमीम बुखारी
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