Pages

Monday, January 31, 2011

डूबते जा रहे हैं सफीने,  और साहिल न पाया किसी ने ,
कोई खिन्दा रहा कोई गिरयां ,ज़िन्दगी के यही हैं करीने.
यास-ओ-हसरत से देखा किये हम,चलदिये काफिले सब मदीने.
आखिरी शब् हुई शमा खामोश ,काविशें बहुत की ज़िन्दगी ने .
और फरेबे-नज़र खाने वाले,खाई ठोकर यहाँ हर किसी ने.
ओजे-हस्ती में पिनाह थी पस्ती,सब मिटा दी मेरी एक खुदी ने.
क्या नज्मे-चमन है 'शमीम'अब ,फूल हंसते न पाए किसी ने .

No comments: