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Friday, July 2, 2010

साग़र वारसी और उन का शेरी मज्मूआ " इर्तेका "




2 comments:

MAZHAR said...

ये सिन्दूरी छितिज पशचिमी , ये सोये-सोये बादल ,
रंगों के दानी बन बैठे छूकर तेरा अरुणाचल .


By a very Senior Kawi of Shahjahanpur "KRISHNAADHR MISR '

SWALEHA said...

यह किस जुर्म की अब सज़ा दी गई ,
की शाखे -नशेमन जला दी गई.

जहां के मकीं हद से आगे बढे ,
वोह बस्ती ही एक दिन मिटा दी गई.

जो तस्वीर आँखों मैं रखने को थी
वोह बाज़ार मैं क्यों सजा दी गई.

मसीहाई का जिस ने दावा किया ,
तो ज़ख्मों की उसको क़बा दी गई.

अज़ल से जो वजहे-ताल्लुक रही ,
वही बात "अख्तर" भुला दी गई.