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ये सिन्दूरी छितिज पशचिमी , ये सोये-सोये बादल ,रंगों के दानी बन बैठे छूकर तेरा अरुणाचल .By a very Senior Kawi of Shahjahanpur "KRISHNAADHR MISR '
यह किस जुर्म की अब सज़ा दी गई ,की शाखे -नशेमन जला दी गई.जहां के मकीं हद से आगे बढे ,वोह बस्ती ही एक दिन मिटा दी गई.जो तस्वीर आँखों मैं रखने को थी वोह बाज़ार मैं क्यों सजा दी गई.मसीहाई का जिस ने दावा किया ,तो ज़ख्मों की उसको क़बा दी गई.अज़ल से जो वजहे-ताल्लुक रही ,वही बात "अख्तर" भुला दी गई.
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ये सिन्दूरी छितिज पशचिमी , ये सोये-सोये बादल ,
रंगों के दानी बन बैठे छूकर तेरा अरुणाचल .
By a very Senior Kawi of Shahjahanpur "KRISHNAADHR MISR '
यह किस जुर्म की अब सज़ा दी गई ,
की शाखे -नशेमन जला दी गई.
जहां के मकीं हद से आगे बढे ,
वोह बस्ती ही एक दिन मिटा दी गई.
जो तस्वीर आँखों मैं रखने को थी
वोह बाज़ार मैं क्यों सजा दी गई.
मसीहाई का जिस ने दावा किया ,
तो ज़ख्मों की उसको क़बा दी गई.
अज़ल से जो वजहे-ताल्लुक रही ,
वही बात "अख्तर" भुला दी गई.
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