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Thursday, February 3, 2011

तमाम  साजिशें   नाकाम  हैं ज़माने की ,
हमारी  फ़िक्र  पे  पाबिन्दियाँ लगानी की .


बुझे चिराग जलाना  हमारी फितरत है ,
हवा से कहदो  कि कोशिश  करे बुझाने की..


उफक को जिससे  छुऐं  गे  तुम्हारे तय्यारे ,
हमारे हाथ में  चाबी है उस  खजाने की .


तेरे लबों  के   तब्बस्सुम  की  बाज़्याबी ने ,
अदाएँ दी हैं  गुलाबों  को मुस्कराने की .


मोहब्बतों  से मोअत्तर है दिल का  दरवाज़ा ,
येही है  असली विरासत , मेरे घराने की..


हमारे होंटों पे  रुक्सां  है  आज भी उर्दू ,
मुखालिफों  ने तो  कीं  कोशिशें  मिटाने की .


हमारे  दिल में  तमन्ना  है आज  भी  "ममनून "
खिजाँ-रसीदा  चमन  में बहार  लाने की .


                       डॉ  . ममनून 
मोबाइल     9305850256





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