जब ही वो साइबां से उठता है ,
साया मेरे यहाँ से उठता है.
मेरी वादी में रोज़ एक तूफ़ान ,
ये न पूछो कहाँ से उठता है.
ये कोई कम है ,बज्मे यारां में,
हशर मेरे बयान से उठता है.
जब में सहरा कि समत बढ़ता हूँ,
एक बगोला वहाँ से उठता है.
शोर कैसा है आज बस्ती में ,
क्या कोई दरमियान से उठता है.
एक झुरमुट किसी कि यादों का,
आज भी कुए-जाँ से उठता है.
चारागर तू ही अब बता मुझको,
दर्द आखिर कहाँ से उठता है.
में तो 'ममनून' वो समुन्दर हूँ,
गम का बादल जहां से उठता है.
डाक्टर ममनून
साया मेरे यहाँ से उठता है.
मेरी वादी में रोज़ एक तूफ़ान ,
ये न पूछो कहाँ से उठता है.
ये कोई कम है ,बज्मे यारां में,
हशर मेरे बयान से उठता है.
जब में सहरा कि समत बढ़ता हूँ,
एक बगोला वहाँ से उठता है.
शोर कैसा है आज बस्ती में ,
क्या कोई दरमियान से उठता है.
एक झुरमुट किसी कि यादों का,
आज भी कुए-जाँ से उठता है.
चारागर तू ही अब बता मुझको,
दर्द आखिर कहाँ से उठता है.
में तो 'ममनून' वो समुन्दर हूँ,
गम का बादल जहां से उठता है.
डाक्टर ममनून
2 comments:
Mamnoon Saheb ka kalam dil ko choo leta hai.Is ghazal ka har sher daad ka mustahiq hai. Zindabad Mamnoon Saheb. Mazhar, bahut achcha kalam post kar rahe ho shukria.
Dekh to dil ke jaaN se uthta hai
yeh dhuaN saa kahaaN se uthta hai.
Yeh gazal parh ke Meer ki shohra-e-aafaq ghazal yad aa jana qudrati baat hai.
Is nazm ki bhi taareef kare beghair koi rah nahiN sakta.
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