हिज्र का मौसम मत पूछो तुम कैसा लगता है,
अश्कों की बरसात अगर हो अच्छा लगता है.
शाम गए जब जशने-चिरागां होता है लोगो ,
और भी दिलकश दूर से उसका कूचा लगता है
अबके बरस कुछ ऐसे उसने ज़ख़्म दिए मुझको,
तन्हाई का एक एक लम्हा अच्छा लगता है .
रुखसत हो जायेंगे एक दिन खुशिओं के लम्हे,
आने वाले हर मौसम से ऐसा लगता है.
दिन तो गुज़र जाता है लेकिन यादों का उसकी,
" शाम ढले इस सूने घर मैं मेला लगता है "
क़ुरब के लम्हे भूल गए हम वक़्त की ठोकर से,
अपना रोशन माजी भी अब सपना लगता है.
क्या जाने वो ज़ात है कैसी जिसकी खुशबू से,
सारा जहां "ममनून' ये मुझको महका लगता है.
Dr. Mamnoon. Mohalla Mullakhel,Near Masjid-e-Khurma Shahjahanpur-242001
Mobile No. 9305850256
No comments:
Post a Comment